आदिवासी उपयंत्री को दबंग पुलिस वालों ने घेर कर पीटा
आदिवासी उपयंत्री कबतक भटकेंगे न्याय के लिये क्योंकि पुलिस नहीं कर रही है उन धाराओं में प्रकरण जिन धाराओं में उनके कथन हैं अब शायद न्यायालय से ही मिल पायेगा न्याय क्या होगा पता नहीं जबकि पुलिस आदिवासी उपयंत्री पर समझौते का बना रही है दबाब देखना है क्या होगा न्याय मिलेगा या फिर जीतेंगे दबंग पुलिस वाले ?
नीमच ( कौशल सिंह त्यागी):- लॉकडाउन के दौरान श्री सुभान सोलंकी अपने कर्तव्य का निर्वाहन उस स्थान पर कर रहे थे जिस जगह को कोविड 19 का कंटेंटमेंट कलेक्टर नीमच के आदेश पर घोषित किया गया था तभी उस दौरान कुछ 6से सात लोग पुलिस की वर्दी धारी आए और उनसे गाली गलौच करते हुये मारपीट करने लगे उनको यह कहते हुये मारपीट की गई है तुझे पता नहीं है कि लॉकडाउन चल रहा है और तू यहाँ खड़ा होकर काम करा रहा है इतना कहकर सभी पुलिस वाले उनके ऊपर ऐसे टूट पड़े जैसे किसी चोर को मार रहे हैं और श्री सोलंकी उनसे रहम की भीख मांगते रहे परन्तु उनकी एक नहीं सुनी वहाँ पर पदस्थ पुलिस वालों ने उन्हें वह आदेश भी दिखाया जिसमें उन्हें उनके अधिकारी के द्वारा उस क्षेत्र में बेरिकेट्स लगाने के निर्देश दिये गये थे परन्तु उन पुलिस बलों को मुंह पर गमछा बांधने के कारण वह उनके नाम नहीं पढ़ पाये तथा इतना अधिक उनके साथ मारपीट की गयी वह अपने साथ हुए दुराचार के लिये जब थाने गये तो पुलिस ने उनकी एफआईआर तक दर्ज करने में काफी देर की वह गिड़गिड़ाते रहे कि साहब जिनकी उस क्षेत्र में ड्यूटी लगी है उनको एक बार आप समाना कर दो परन्तु उनकी सुनवाई नहीं कि गयी एवं सिर्फ पुलिस उनके साथ टाल मटोल करती रही और एक आवेदन लेकर भगा दिया जब उपयंत्री के द्वारा सूचना अधिकार के तहत उक्त घटना के आवेदन उनके साथ हुई मारपीट के आवेदन लगाये तब कहीं जा कर पुलिस विभाग के द्वारा 8मई की घटना की एफआईआर 10 मई को की गई जबकि कोरोना के वक़्त कार्यरत किसी भी कोरोना वारियर्स के साथ अभद्र व्यवहार करने पर माननीय मुख्यमंत्री जी के स्पस्ट आदेश हैं कि उन व्यक्तियों के खिलाफ एनएसए की ही कार्यवाही की जानी थी मुख्यमंत्री जी के आदेशों को यदि छोड़ भी दिया जाये तो जाँच अफसर एस आई कृष्ण सिंह सिसोदिया ने तो न तो एससी एसटी एक्ट एवं शासकीय कार्य में बाधा तक कि धारा नहीं लगायीं सिर्फ जांच अधिकारी कृष्णा सिंह सिसोदिया जी से बात करने पर बताया गया कि सभी धाराएं मेरे द्वारा वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर लगायीं गयीं हैं इस कथन से यह स्पस्ट हो जाता है की दंबग पुलिस वालों के द्वारा की गयी उपयंत्री के साथ किया गया दुर्व्यवहार किसी दंड संहिता के अंतर्गत नहीं आता उनके द्वारा किये गये अमानवीय कृत्य वह करते रहेंगे इस सबसे तो यह प्रतीत होता है कहीं न कहीं इस सम्पूर्ण प्रकरण में स्वयं जांच अधिकारी स्वयं दोषी हैं क्योंकि 7मई को घटना होना 8मई को आवेदन को स्वीकार्य किया जाना एवं 10 मई को एफआईआर का दर्ज होना वह भी उन धाराओं के उल्लेख न होना जो की एफआईआर में फरियादी के द्वारा कथित तौर पर बताई गई है यह अपने आप में एक बड़ा प्रशन चिन्ह है कि व्रतांत में तो कथन हैं पर धाराओं में नहीं यह एक आदिवासी अधिकारी के साथ अन्याय है अब देखना होगा कि उसे आखिर कब तक न्याय मिलेगा
आखिर कब तक भटकेगा एक आदिवासी न्याय के लिये